Wednesday, June 21, 2006

पहला कदम:

इस ई दुनिया में हमारी उपस्थिति देख पा रहें आप सभी लोगों को ज़िया कुरैशी का सलाम नमस्ते । पोर्टल पर हिन्दी की इस सुलभता ने यह अवसर दिलवाया है कि हम आपसे रूब़रू हो सकें । सबसे पहले मैं साफ दिल से ई छत्तीसगढ़ और उसके अस्तित्व सें जुड़े विचार से आपको अवगत कराना चाहूंगा । हम लोग ई माध्यम से अपनी मातृभूमि छत्तीसगढ़ राज्य से जुड़े उन तमाम लोगों को माटी की सुगंध का आभास कराना चाहेंगे , जिनके दिलो दिमाग में छत्तीसगढ़ बसता है ।ऐंसे सैकडों , शायद हजारो खुश किस्मत भी है जो इसी माटी में पले बढ़े और देश परदेश के किसी ठिकाने पर जाकर उस कर्मभूमि को समर्पित है , उन लोगों को विश्व पटल के प्रतिनिधि इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ भी मिले । साथ ही हिन्दी जगत के प्रतिबद्द सेवा भावी जनों की रचनाओं को यथा संभव हिस्सा बनाने के लिए कार्य करेंगे । हमारी कोशिश होगी कि हम छत्तीसगढ़ के लोगों की सुध भी ले पाऐं । जिनकी आवाज़ को यदा कदा स्वर भी नहीं मिल पाता हम उनकी पीड़ा को सुनने और उसे उचित मंच तक पहुचाने का प्रयास भी करेगें।सिर्फ यही नहीं इंटरनेट तक पहुंचने वाले राज्य के सभी वर्ग के लोगों को उनकी जरूरत की सूचनाऍ ,समाचार आवश्यक जानकारियां और डाटा उपलब्ध कराने की कोशिश भी करते रहेगें जो इस सूचना युग में उन्हें विकास और समाधान की ओर ले जाने के आवश्यक होंगी। छत्तीसगढ़ प्रदेश से जुड़ी लोक कला संस्कृति और साहित्य के माध्यम से अपनी सेवाएं देनें वाले मनीषियों की राह सें ऐसें कंकड़ बीनने का प्रयास करना चाहेंगे जो उनकी समर्पण की भावना को कहीं न कहीं अब तक आहत करते रहें है ।
इस प्रदेश मे काम करने वाली सामाजिक , राजनैतिक और गैर सरकारी संस्थाओं की हलचल को अपने अत्यंत सीमित साधनों के माध्यम से प्रकाश में लाने के लिए काम करते रहना भी हमारी प्राथमिकता का एक हिस्सा होगा । अपनी इस कोशिश में हमें कितनी सफलता मिलती है इसका जवाब सिर्फ आने वाला वक्त ही दे सकता हैं । ई छत्तीसगढ़ के रूप में हमारा यह प्रयास एक पहला कदम है हमारी भावना और इंटरनेट समाचार पत्र का संबंध किसी दावें - प्रतिदावें से नहीं है हम अपने वेब पेज के जरिए जनपत्रकारिता के उस विचार को आगे बढ़ाने की दिशा में अग्रसर होंगे जिसमें हर किसी को अपनी बात कहने और सरकारी तंत्र की सूचनाऍ हासिल करने का लोकतांत्रिक अधिकार हासिल होता है ।फिलहाल मैं स्वयं और ई छत्तीसगढ़ से प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ रहें साथियों के लिए आपके सहयोग और शुभकामनाओं की उम्मीद कर रहां हूं । इस प्रयास के संबंध में यदि आप कोई सुझाव एवं मार्गदर्शन देंते है तो हमारी हौसला अफज़ाई होगी। बातें अभी बहुत सी है पर अभी बस इतना ही । ज़िया कुरैशी( रायपुर )

Tuesday, June 20, 2006

धर्म

बिलासपुर (ई छत्तीसगढ़) कोरबा मुख्य मार्ग पर 25 कि.मी पर स्थित आदिशक्ति महामाया देवी का पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरव शाली है । पौराणिक ग्रंथ महाभारत , जैमिनी पुराण आदि में इसे राजधानी होने का गौरव प्राप्त है । त्रिपुरी के कलचुरीयों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया । इसे चर्तुयुगी नगरी भी कहा जाता है जिसका तात्पर्य है कि इसका अस्तित्व चारों युगों में विघमान रहा है ।राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक देकर अपनी राजधानी बनाया ।
श्री आदिशक्ति मॉ महामाया देवी : लगभग 1000 वर्ष प्रचीन महामाया देवी का दिव्य एव भव्य मंदिर दर्शनीय है । इसका निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11 वीं शताब्दी में कराया गया था। 1045 ई. में राजादेव रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में शिकार के लिये आये थे जहां रात्रि वित्राम उन्होंने एक वट वृक्ष पर किया अर्ध रात्रि में जब राजा की आंखे खुली तब उन्होने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चमत्कृत हो गये कि वहां आदिशक्ति का श्री महामाया देवी का सभा लगी हुई है । इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे । सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया तथा 1050 ई. में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया ।