Tuesday, September 05, 2006

इसलिए मत जानो

जिय़ा कुरैशी
--------
राय़पुर.ई.छत्तीसगढ, 5 सितंबर। मध्य़प्रदेश के जगप्रसि्द्ध नगर उज्जैन में एक प्रोफेसर की उनके ही कालेज मे हुई हत्य़ा की घटना ने हिंसा के ताडंव का वह रूप दिखा दिय़ा है जिसे अभी छात्रसंघ चुनाव की हिंसा की शक्ल में देखा जा रहा है।पर मुझे लगता है,बात सिफॅ इतनी नहीं है। छात्रों की राजनीति के नाम पर सत्ताधारी दल के इशारों पर काम करने वाले, उन्हीं के पालित पोषित लोग ही इस हौसले के साथ य़ह दुस्साहस कर सकते है।

प्रोफेसर हरभजन सिंह सबरवाल जो एक दिलेर ,दबंग व्य़क्ति थे उन्हें य़ह अभिमान था कि उन्हे कोई कुछ नहीं कर सकता(दरअसल य़ह उनका विश्वास था) और फिर वे अंजान लोगों के बीच य़ा हमलावरों के सामने भी नहीं जा रहे थे। उनके सामने ही स्कूल से निकले और कालेज में पढने आए छात्र ही तो थे ,उनमें सब य़ुवा और बहुत से उनके बेटे की आय़ु के थे।


पर सबरवाल साहब के विश्वास पर लात घूंसो के इतने वार हुए कि एक जीते जागते इंसान की मौत हो गई । मामले के दोषिय़ो पर पुलिस कारॅवाई के तहत हत्य़ा का एक और मुकदमा काय़म हो गय़ा है। कालेज में प्रोफेसर को पीट-पीट कर मार देने की य़ह घटना शिक्षाजगत के एक काला दिन है।छात्रो के भविष्य़ को संवारने में अपना जीवन कुरबान कर देने वाले प्रोफेसर साहब को ,मेरी समझ से शहीद का दरजा मिलना चाहिए।
दूसरी तरफ य़ह चिंतनीय़ है कि छात्र और य़ुवा किस दिशा में जा रहें हैं ,छात्र राजनीति करते समय़ बडे नेताओं की कठपुतली बनकर काम करते रहना छात्र-संगठनों की तात्कालिक मजबूरी हो सकती है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम प्रोफेसर की बेसमय़ मौत बनाम हत्य़ा जैसे नतीजों की शक्ल में सामनें आएंगे ।
दुख की एक और बात य़ह भी है कि गमगीन परिवार को सरकार (राज्य़) की तरफ से न्य़ाय़ की जगह निराशा मिल रही है। मामले के मुख्य़ मुलजिम सरकारी दल के झंडाबरदार हैं।
स्व.श्री सबरवाल का परिवार अपनी व्य़था के साथ न्य़ाय़ की लडाई भी लड रहा है। उनके सुपुत्र हिमांशु सबरवाल नें साफ कहा है कि राज्य़ सरकार जिस तरीके से जांच कर रही है उससे नतीजे की उम्मीद कम ही है।न्य़ाय़ पाने की कोशिशों के तहत हिमांशु अपना एक वेबसाइट बना रहे हैं, उनका प्रय़ास होगा कि दुनिय़ा भर के कानून विशेषज्ञों से मुकदमे के लिए सलाह ली जाए। उज्जैन नगरी अब इस लिए भी जानी जाएगी ।

1 comment:

रवि रतलामी said...

यह तो नेताओं की शिक्षा को राजनीतिकृत करने की साजिश का पहला नतीजा है.

देखते जाइए, आगे और गुल खिलेंगे.

सारी शिक्षा व्यवस्था अभिशप्त है- नेताओं के वोट बैंकों की खातिर रसातल में जाने के लिए...