Wednesday, July 12, 2006

प्रतिभा पलायन की बदलती धारा

लेख: गरिमा शर्मा
हमारे देश के हजारों युवक/युवतियां प्रतिवर्ष उच्‍चतर अध्‍ययन या आकर्षक रोजगार की चाह में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फांस और ऑस्‍ट्रेलिया जैसे देशों की ओर पलायन कर जाते हैं. इनमें से अधिकतर भारतीय विदेश से ही बस जाते हैं, क्‍योंकि इन देशों में अच्‍छे वेतन के साथ-साथ कई अन्‍य सुविधाएं उन्‍हें मिलती हैं, जिनके बल पर वे अपने जीवन को उच्‍च स्‍‍तरीय बना सकते हैं. पिछले पांच दशक से भी अधिक समय से हम भारत से प्रतिभा पलायन (Brain Drain) को लेकर बहुत शोर-गुल मचा रहे हैं, किंतु इस प्रतिभा पलायन को रोकने के लिए अभी तक हमारी ओर से कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए हैं.
हमारे महानगरों के कुछ पब्लिक स्‍कूल और हमारे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान (Indian Institutes of Technology) तथा भारतीय प्रबंधन संस्‍‍थान ( Indian Institutes of Management) विश्‍व स्‍तरीय शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. सरकार और देश की जनता एक बड़े स्‍तर पर धन खर्च करते हुए इन प्रतिभाओं का विकास यह सोच कर करती है कि आने वाले समय में ये प्रतिभाएं राष्‍ट्र के विकास में सार्थक योगदान देंगी, किंतु इनकी उत्‍कृष्‍टता का प्रयोग विश्‍व के अन्‍य देशों द्वारा अपने विकास के लिए किया जाता है. क्‍या यह हमारे लिए शर्म की बात नहीं है ?
आलोचकों का कहना है कि जब अन्‍य देश हमारी तुलना में ज्‍यादा वेतन तथा अन्‍य उच्‍च स्‍तरीय सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं, तो फिर हम अपनी प्रतिभाओं को विदेश जाने से कैसे रोक सकते हैं ? परिणामस्‍वरूप हमें भारी क्षति हो रही है और अन्‍य देश हमारी इस क्षति का भरपूर लाभ उठा रहे हैं. अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली अमेरिका खगोलशास्‍त्री कल्‍पना चावला केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्‍व की अन्‍य महिलाओं के लिए भी एक आदर्श बन गई. यद्यपि वे भारतीय मूल की थीं, किंतु फिर भी अमेरिकी खगोलशास्‍त्री कहलाई. वर्ष 2005 के प्रारंभ में अमेरिका ने विदेशी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को वीजा सीमाओं में छूट देने का निर्णय लिया. उल्‍लेखनीय है कि यू.एस.नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियर्स के स्‍क्रॉल ऑफ ऑनर 2005 में कई विदेशी मूल के वैज्ञानिकों सहित 74 नए वैज्ञानिक थे. इनमें 5 भारतीय मूल के थे. वे थे- सुभाष महाजन, चेयरमैन, रसायन एवं सामग्री इंजीनियरिंग विभाग, ऐरिजोना स्‍टेट यूनिवर्सिटी; अरूणाभ मजूमदार, मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, कैलिफोर्निया विश्‍वविद्यालय, बर्कले; आर. शंकर नायर, वरिष्‍ठ उपाध्‍यक्ष, टेंग एंड एसोसिएट्स, शिकागो; राजा वी. रमानी, प्रोफेसर एमेरिटस, खनन एवं भू-पर्यावरण इंजीनियर, पेन्सिल्‍वेनिया स्‍टेट यूनिवर्सिटी; और सुभाष सिंगल, फ्यूल सैल्‍स के निदेशक, पैसिफिक नॉथवैस्‍ट राष्‍ट्रीय प्रयोगशाला, रिचलैंड, वाशिंगटन. इन प्रतिष्ठित भारतीयों को सेमी-कंडक्‍टर्स, फ्यूल सैल्‍स, नैनो-टेक्‍नोलॉजी, भवन प्रौद्योगिकी और कोयला-खनन सुरक्षा के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट योगदान देने के लिए सम्‍मानित किया गया. ये पांच विशेषज्ञ कुल 2000 इंजीनियरों की सूची में शामिल हो गए, इस सूची में लगभग 50 भारतीय हैं, जो राष्‍ट्रीय इंजीनियर एवं विज्ञान विभाग के आजीवन सदस्‍य बन चुके हैं. पूर्व वर्ष के सम्‍मानित लोगों में स्‍टीफन हॉकिंग और बिल गेट्स शामिल थे. इस प्रतिष्ठित निकाय के भारतीय मूल के सदस्‍यों में डॉ. हरगोबिंद खुराना और डॉ. एस. चंद्रशेखर भी शामिल हैं.
जब कभी भी प्रतिभा पलायन पर बहस होती है, तो इसका एक ही प्रमुख कारण दिया जाता है कि भारतीय युवा विदेशों में पलायन इसलिए करते हैं, क्‍योंकि उनकी उत्‍कृष्‍टता को भारत में न तो उचित सम्‍मान मिलता है और न ही मान्‍यता. जब यह बहस आरंभ हुई थी, तो इस कथन को कुछ सीमा तक सही माना जा सकता था. किंतु आज परिस्थितियों में अभूतपूर्व परिवर्तन आया हैं, और प्रतिभाशाली लोग यदि कठिन परिश्रम करने के लिए तैयार हैं, तो भारत में रहकर भी वे सर्वोच्‍च पदों पर पहुंच सकते हैं.
आज भारतीय युवाओं को, चाहे वे जिस क्षेत्र में भी काम कर रहे हों, अपनी योग्‍यता के लिए पर्याप्‍त सम्‍मान मिलता है. खेलों के क्षेत्र का ही उदाहरण ले लीजिए, जहां सचिन तेंदुलकर, सानिया मिर्जा और अंजू बॉबी जॉर्ज जैसे खिलाड़ी अधिसंख्‍य युवक/युवतियों का आदर्श बन चुके हैं. प्रवर्त्तनकारी और प्रबंधनात्‍मक कौशल के क्षेत्र में भी भारतीय किसी से कम नहीं हैं. दुग्‍ध उत्‍पादन के क्षेत्र में भारत को विश्‍व में सर्वोच्‍च स्‍थान पर ले जाने का श्रेय यदि किसी को दिया जाता है, तो वो हैं ‘श्‍वेत क्रांति’ के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन. कोंकण रेलवे परियोजना को रिकॉर्ड समय में पूरा करने वाले श्रेष्‍ठ इंजीनियर श्री ई. श्रीधरन ने विश्‍व स्‍तरीय दिल्‍ली मेट्रो रेल को भी तैयार किया. अमिताभ बच्‍चन अब केवल भारतीय सिनेमा के सुपरस्‍टार ही नहीं हैं, बल्कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के प्रस्‍तुतीकरण और ऐसी कई अन्‍य भूमिकाओं का निर्वाह करते हुए उन्‍होंने वैश्विक स्‍तर पर खयाति अर्जित की है. अंबानी बंधुओं, टाटा परिवार, मित्तल परिवार और ऐसे कई अन्‍य लोगों का उदाहरण ले लीजिए, जिन्‍होंने विभिन्‍न महाद्वीपों में अपने पदचिह्न छोड़े हैं. कई भारतीय सुंदरियों ने मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्‍ड का ताज जीता, किंतु किसी ने भी पूर्व मिस वर्ल्‍ड ऐश्‍वर्या राय की तरह बॉलीवुड, हॉलीवुड और कान फिल्‍म महोत्‍सव में ख्‍याति अर्जित नहीं की.
भूमंडलीकरण के इस युग में भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी, बायोटेक्‍नोलॉजी, नागरिक उड्डयन, स्‍टील उत्‍पादन और ऐसे कई क्षेत्रों में उच्‍च स्‍तरीय उद्यमी विश्‍व को प्रदान किए हैं. आज भारत विभिन्‍न क्षेत्रों में जिस प्रकार से पूरे विश्‍व में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रहा है, उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं लगता, जब देश में प्रतिभा पलायन के स्‍थान पर प्रतिभा आगमन की स्थिति उत्‍पन्‍न होगी और दूसरे देशों के लिए कार्य कर रही हमारी सर्वर प्रतिभाएं भारत वापस आकर कार्य करने लगेंगी.

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